Thursday, March 19, 2009

हिन्दी या अंग्रेजी....?

कैसे शुरू करूं? क्या लिखूं? कौनसी भाषा में लिखूं? लिखूं या ना लिखूं? टाईम कहाँ है? ऐसे ही कई प्रश्नों का द्वन्द्व मेरे मन में कई दिनों से चल रहा था.....और फिर अचानक आज ठान ही ली। लिखना तो है ही और शुरूआत भी हिन्दी से ही करनी है। फिर दिमाग ने अपनी टाँग अढ़ाई – भैया, अंग्रेजी के अध्यापक हो, हिन्दी में लिखोगे – सब क्या कहेंगे? शेक्स्पीयर ने सही ही कहा है – Thus conscience does make cowards of us all – अधिक सोच हमें कमजोर बना देती है। फिर दिल से आवाज आई – क्यों माँ को भूल कर बीवी का पक्ष ले रहे हो – भूल गए जब बचपन में रोया करते थे, इसी हिन्दी से प्यार पाया करते थे – वो माँ की लोरी भी हिन्दी थी – वो पिता का दुलार भी हिन्दी में था – वो दादी की कहानियाँ भी हिन्दी थीं – वो दोस्तों की पुकार भी हिन्दी में थी – भैया, हिन्दी की और अधिक ‘हिन्दी’ ना करो, और चुपचाप अपने ब्लॉग की शुरूआत हिन्दी में लिखकर ही करो।
तभी दिमाग ने एक बार फिर से अपनी राग अलापी। सारी उम्र तो पढ़ा अंग्रेजी साहित्य, हिन्दी तो केवल विद्यालय की पुस्तकों तक ही सीमित थी, फिर भी गुण गा रहे हो हिन्दी के। तो दिल से आवाज आई – साहित्य का भाषा के साथ क्या सम्बन्ध? साहित्य तो एक अहसास है, भाषा तो केवल अभिव्यक्ति का माध्यम है – फिर वो चाहे हिन्दी हो, अंग्रेजी हो या फिर उर्दू या पुर्तगाली हो। आनन्द भाषा में नहीं साहित्य में होता है। साहित्य और भाषा का सम्बन्ध संगीत और वाद्य यंत्र के समान होता है। संगीत वाद्य यंत्रों पर निर्भर नहीं करता है। सुर और संगीत तब भी था जब ये मशीने नहीं थीं। बिना संगीत के वाद्य यंत्रों का कोई महत्व नहीं है परंतु वाद्य यंत्रों की महत्ता को भी तो नकारा नहीं जा सकता है।
हाँ, अगर अपने शरीर और आत्मा दोनों में संतुलन बनाए रखना चाहते हो तो कभी हिन्दी में लिखो और कभी अंग्रेजी में। वाकई यदि हिन्दी मेरी आत्मा है तो अंग्रेजी मेरा शरीर। दोनो के बिना मेरा अस्तित्व एक कोरी कल्पना है। मैं आध्यात्मिक रूप से अभी तक इतना परिपक्व नहीं हुआ हूं कि अपने आप को एक आत्मा मानकर, शरीर के अस्तित्व को ही नकार दूं। आखिर आत्मा की अभिव्यक्ति भी तो शरीर के माध्यम से ही होती है। बिना शरीर के आत्मा को ‘भूत’ की संज्ञा दी जाती है।
इसलिए भैया अंग्रेजी में लिखना मना नहीं है, परंतु कभी-कभी हिन्दी में भी भावोभिव्यक्ति कर लेना कोई अक्षम्य अपराध नहीं है और फिर अपने स्कूल में तो आप कभी हिन्दी में लिखते ही नहीं, सदैव अंग्रेजी का दामन थामे रहते हो, तो क्या अपनी इस मातृभाषा को भूल जाने का इरादा है?

1 comment:

  1. I admire your line of thought-"always so unique different" indeed.It incites the nostalgia and patriotism within an individual.

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